Wednesday, January 20, 2010

betiya


सुख को जब बाँट भी लेते , दुख जाने क्यू बाँट न पाते ||
अंतर -मन के एक कोने मे , टीस कभी रह जाती है ||
न मै जिसे बता पाता हु , न जुबान कह पाती है|
होते सब दुख दूर तभी, जब माथे को सहेलाती बिटिया ||
नया जोश भर जाता मन मे , जब धीरे मुस्काती बिटिया||
लोग मुर्ख जो मासूमों से , भेदभाव कोई करते है||
जिम्मेदारी बचने को , एक बहाना रचते है||
बेटा - बेटी एक समान ,हमने पाया नारा है|
घर की बगिया में जो महके , सुंदर कोमल फूल है बिटिया ||
मान मेरा , सम्मान बिटिया ,अब मेरी पहचान है बिटिया ||
न मानों तो आकर देखो, माँ बाबा की जान है बिटिया |
मेरी बिटिया सुंदर बिटिया , मेरी बिटिया प्यारी बिटिया ||"
"इतु"राजपुरोहित

betiya

"किसी  पेड की इक डाली को ,नवजीवन  का  सुख देने |
नव  प्रभात  की  किरणों  को ले , खुशियों  से  आँचल भर  देने ||
किसी दूर परियो के  गढ़  से ,नव कोपल  बन आई  बिटिया |
सबके  मन  को भायी बिटिया , अच्छी  प्यारी  सुन्दर  बिटिया ||
आँगन मे  गूंजे  किलकारी  ,  जैसे  सात सुरों  का संगम |
रोना  भी उसका  मन भाये, पर हो जाती  है  आँखे  नम  ||
इतराना  इठलाना   उसको ,मन को  मेरे भाता  है |
हर पीड़ा को भूल  मेरा मन , नए  तराने  गाता है ||
जीवन के  बेसुरे  ताल  मे , राग  भेरवी  लायी  बिटिया  |
सप्त  सुरों  का  लिए  सहारा ,  गीत नया  कोई  गायी बिटिया ||
बस्ते  का वह बोझ  उठा  , काँधे पर  पढ़ने  जाती है |
शाम  पहुचती जब  घर  , हमको  इंतजार  मे पाती है ||
धीरे -धीरे  तुतलाकर  , वह  बात  सभी  बतलाती  है |
राम-रहीम  गुरु  ईसा के , रिश्ते  वह  समझाती  है ||
                                                          
"itu" rajpurohit                      

Friday, January 8, 2010

betiya


मुझसे  ही तो घर  खिलखिलाता   है ,
   फिर क्यों  मुझे मार दिया  जाता  है ....?
   ये दुनिया नहीं  चल  सकती  मुझ बिन
   फिर क्यों  मुझे दुनिया मे आने  से
   रोक  दिया जाता  है ...?
   जेसे  बेटा  घर का  चिराग  है ,
   मै भी  तो  उसी  घर की रोशनी  हू |
   लड़का - लड़की  मे भेद  नहीं ,
   ये  क्यों  नहीं समझा  जाता  है |     "itu"