Monday, December 3, 2012

betiya


बाबुल की आन और शान है बेटी ,
इस धरा पर मालिक का वरदान
ही बेटी ,

जीवन यदि संगीत है तो सरगम
ही बेटी ,
रिश्तो के कानन में भटके इन्सान
की मधुबन सी मुस्कान ही बेटी,

जनक की फूलवारी में कभी प्रीत
की क्यारी में ,
रंग और सुगंध का महका गुलबाग
ही बेटी ,

त्याग और स्नेह की सूरत है ,
दया और रिश्तो की मूरत ही
बेटी ,

कण – कण है कोमल सुंदर
अनूप है बेटी ,
ह्रदय की लकीरो का सच्चा
रूप है है बेटी ,

अनुनय , विनय , अनुराग
है बेटी ,
इस वसुधा और रीत और प्रीत
का राग है बेटी ,

माता – पिता के मन का
वंदन है बेटी ,
भाई के ललाट का चंदन
है बेटी ।

ये बेटियां




छोड़ के ये सब ताल तलैया
कल तुझको उड़ जाना है
जिन बागों में खेली कूदी
वो सब तो बेगाना है
याद मुझे सब होली दीवाली
खेल खिलौने हंसी ठिठोली
गुड्डे गुड़िया की वो शादी
आज हकीकत में है बदली
कल जब तेरा होगा जाना
हो जाएगा आंगन सूना
चुपके चुपके याद में तेरी
रोएगा घर का हर कोना
याद करेगा भैया तुझको
गुड़िया तेरी याद करेगी
पिता तो पत्थर रख लेगा पर
माँ तुझको ही याद करेगी
बेटी तो सदा पराया धन
जा तुझको सुखी संसार मिले
बस दुआ इतनी सी है
इस घर से भी ज्यादा प्यार मिले

Saturday, November 10, 2012

मैं बेटी हूँ !
पर मैं तो बेटी हूँ ...
ना मैंने कभी जिद की,
ना ही मेरी जिदें पूरी हुई...
जिद थी जीने की,
जिद थी पढ़ने की...
जिद थी लड़कों के बराबर माने जाने की !
भाई तो करे मस्ती खूब,
मैं तो करती चूल्हा-चाकी..
वो करता सबको तंग,
मैं करती दुलार सभी का..
पर मैं तो बेटी हूँ ...
भाई पढ़ा अच्छी स्कूल में,
पर मैं तो थी सरकारी !
वहां पढ़ी,
बनी अबला से सबला...
दूरियां बनी बाधा...
गांव से बाहर ना जा पाई..
बहुत हुई सरकारी,
अब तो होना था परायी !
ना मैंने जाना,
ना थी पूछने की इजाजत..
कौन होगा वो घर का नया धणी..
चाहे हो वो गंजा,
चाहे हो वो छैला चाहे हो दूज-बर..
मुझे तो था बस बनना धण...
ना उमंग ना आशा ...
जैसा हो नया घर !
दहेज के ताने,
गरीबी ही जाने ...
किसी को जलना तो किसी को पिटना होता है...
दहेज लोभियों की जिल्लतें सहते ही सहते,
रोते रोते मर जाना होता है..
हाँ मैं तो बेटी हूँ ...
पेट में बच्चा होने का अंदाज
सुहाना होता है....
बेटी हो या बेटा...
माँ को तो माँ रहना है ..
जमाने को चाहिये बेटा,
बेटी हो दफनाना है :(
इसी कशिश में इसी तड़प में एक
माँ को भी तो मर जाना है...
गर्भपात हो या भ्रूण-हत्या ... भ्रूण के
साथ एक माँ भी मरती है !
बेटी होना कितना भी बुरा हो .. पर मैं
तो बेटी हूँ ...
घर में जन्मी हूँ घर में मरूंगी ..
घर बदलेगा ...
माँ और बेटी नहीं बदलेगी !
जन्म से विवाह तक दिन-रात मैंने अपने
बाबुल के घर को सींचा है !
विवाह से मृत्यु तक ससुराल का हर मान
निभाया है !
फिर भी बेटी की हत्या की जाती है !
बेटी होगी तभी तो बहु, माँ, बहन
होगी...
अगर चलता रहा ऐसे ही..
पृकृति खुद लेगी बदला ..
तैयार रहे...
बेटी ने घर को केवल सींचा है, समझा है
चलाया है !
आदमी करै चौधर झूटी, लुगाई चलावै घर !
** एक बेटी का खत दुनिया के नाम !!!

Wednesday, July 25, 2012

betiya


बेटी का जन्म
क्या कहूँ की जो शुरुआत हुई
जैसे तपते दिन में रात हुई
सूरज ने ली सब किरणें समेट
मातम ने घर को लिया चपेट
सबकी शक्लें मुरझाई हैं
हाय ! लड़की घर में आई है
न थाली बजी, न पेड़े बटें
न मिली दुआ , न उतरी बला
छाई आफत की परछाई हैं
पर माँ तो "माँ "है क्या करती
कैसे देख उसे, आहें भरती
ये रिश्ता जग से न्यारा है
उसे तो बेटी का रूप भी प्यारा है
पिता का दिल कुछ भारी है
पर संतान इन्हें भी प्यारी है
चिंता हो मन में, फिर भी मैं
होंठो को अपने सी लूँगा
चार निवाले दे तुझको
खुद दो घूंट पानी पी लूँगा
बस दिल में गहरा दर्द भरा
ना सोना बड़ा घड़ो में कभी
न रकम बड़ी है तिजोरी में
बरस में दो दो सावन आकर
रंग भरे हैं मेरी छोरी में
बीत गए, दिनों में साल कई
एक दम से मुनिया, बड़ी हुई
कुछ भी कर अब पिता को तो
बेटी का ब्याह रचाना है
दहेज़ की मांग पूरी करने को
खुद खड़े खड़े बिक जाना है
इतने पर भी उनको चैन कहा
जो दहेज़ नहीं कभी लेते है
बस बेटी को अपनी, उपहार दीजिये
इतना ही कह देते है
आव भगत की बात तो तय है
कपड़े कितने दिलाओगे
ठाकुरजी के भोग को क्या ना
चाँदी के बर्तन लाओगे
मारुती में ही गुजर करेंगे
छोटे से फ्लेट में रह लेंगे
बेटी को दो, जो देना है
हम दहेज़ कतई नहीं लेंगे
तब रोती है ममता खुद पर
और बाप का दिल भर आता है
वरना बेटी का मखमल सा
प्यार किसे नहीं भाता है
जब तक दहेज़ के दानव का
विस्तार यहाँ ना कम होगा
तब तक गरीब के घरो में
"बेटी का जन्म" मातम होगा

Sunday, July 22, 2012


नेह, ममता, करुणा की, हैं मूर्त साकार बेटियां
देती है माँ – बहिन, पत्नी का प्यार बेटियां
रखती ख्याल सबका हैं, ये होशियार बेटियां
हैं बड़ी हिम्मती यह, नहीं मानती हैं हार बेटियां

काली, दुर्गा, सरस्वती, हैं देवियाँ हज़ार बेटियां,
आने वाली पीढ़ी को, देती है संस्कार बेटियाँ,
बेटे से कहाँ हैं कम, ये ये समझदार बेटियां,
कल्पना की उड़ान में, जा चुकी अंतरिक्ष पार बेटियां |

फिर बताओ न पापा सच-सच, क्यों नहीं करते प्यार बेटियाँ
क्यों पैदा होने से पहले ही, देते हो मार बेटियां ?
अभी धडकनें बनी थी बस, सांसें ना मिल पाई उधार बेटियां,
आँखें तक ना खुल पायीं, न देख पाई संसार बेटियां |

बेटियों ने जिन्हें जनम दिया, उन्हें ही नहीं स्वीकार बेटियां,
कौन सा यह न्याय है, क्यों जुल्म की शिकार बेटियां,
कैसे कहे किससे कहे, ये अजन्मी मूक – लाचार बेटियां ?
बस लड़ रही खुदा से वह, क्यों बनाया तूने परवरदिगार बेटियां ?

Monday, June 25, 2012

राह देखता तेरी बेटी, जल्दी से तू आना,
किलकारी से घर भर देना, सदा ही तू मुस्काना,

ना चाहूं मैं धन और वैभव, बस चाहूं मैं तुझको
तू ही लक्ष्मी, तू ही शारदा, मिल जाएगी मुझको,

सारी दुनिया है एक गुलशन, तू इसको महकाना
किलकारी से घर भर देना, सदा ही तू मुस्काना,

बन कर रहना तू गुड़िया सी, थोड़ा सा इठलाना,
ठुमक-ठुमक कर चलना घर में, पैंजनिया खनकाना

चेहरा देख के तू शीशे में, कभी-कभी शरमाना
किलकारी से घर भर देना, सदा ही तू मुस्काना

उंगली पकड कर चलना मेरी, कांधे पर चढ़ जाना
आंचल में छुप जाना मां के, उसका दिल बहलाना

जनम-जनम से रही ये इच्छा, बेटी तुझको पाना
किलकारी से घर भर देना, सदा ही तू मुस्काना।
एक नन्ही सी कली, धरती पर खिली
लोग कहने लगे पराई है पराई
जब तक कली ये डाली से लिपटी रही
आँचल मे मुँह छिपा कर, दूध पीती रही
फूल बनी धागे मे पिरोई गई
किसी के गले में हार बनते ही
टूट कर बिखर गई
ताने सुनाये गये दहेज में क्या लाई है
पैरों से रौन्दी गई
सोफा मार कर घर से निकाली गई
कानून और समाज से माँगती रही न्याय
अनसुनी कर उसकी बातें
धज्जियाँ उड़ाई गई
अंत में कर ली उसने आत्महत्या
दुनिया से मुँह मोड़ लिया
वह थी
एक गरीब माँ बाप की बेटी.

अगर एक बेटी या बेटा होता,
दुनीयाँ में ये नाता न होता ।

माँ भी होती बाप भी होता,
न भाभी होती न भैया होता,
गर मैं भी अकेला होता,
बहन होती न जीजा होता।

दादी होती दादा भी होता,
न चाची होती न चाचा होता,
गर मेरा बाप अकेला होता,
फुफी होती न फुफा होता।

नानी होती नाना भी होता,
न मामी होती न मामा होता,
गर मेरी माँ अकेली होती,
मौसी होती न मौसा होता।

सास भी होती ससुर भी होता,
न साली होती न साला होता,
गर मेरी बीबी अकेली होती,
मैं भी किसी का जीजा न होता।

अगर एक बेटी या बेटा होता,
दुनीयाँ में ये नाता न होता !!
 

बोलो न माँ …………..बेटिया क्यों बोझ होती है .?
''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
क़त्ल करना है तो सबका करो
मुझ अकेली को मारने से क्या होगा
अगर मिटाना है मेरी हस्ती को
तो सबको मिटाओ …………..
मुझ अकेली को मिटाने से क्या होगा …………..

हूँ गुनहगार अगर मैं दादी
तो दोषी तो आप भी है
सजा देनी है तो खुद को भी दो
मुझ अकेली को देने से क्या होगा …………………

किया होता अगर ऐसा ही
दादी के पापा ने दादी के साथ
तो क्या आज आप होते पापा
जरा सोच कर तो देखिये …………………
मेरे इस नन्हे से जिस्म के टुकडो को
जो रंगे हुए है खून से ……………..
एक छोटी सी सुई चुभ जाती है जब उँगली में
तो कितना दर्द होता है ……..
जानते है न पापा आप ……………………..
फिर कैसे …………….फिर कैसे पापा
कैसे आपने कर दिया अपने ही अंश को
उन सब के हवाले काटने के लिए ……………
एक नन्ही सी जान को मरने के लिए
अगर बोझ ही उतरना है …………….
तो दादी को, माँ को, बुआ को भी मारो
मुझ अकेली को मारने से क्या होगा
क़त्ल करना है………………………………..
कितनी आसानी से मान गई आप भी माँ
क्यों —- क्या मैं कोई भी नही थी आपकी
या मज़बूरी थी आपकी भी ……….
भगवान की तरह………………
भगवान जिन्हें मालूम है अपने इंसानों की फितरत
जो जानते है —– इन लालची इंसानों की हैवानियत को
लेकिन फिर भी भेज देते है हमे इस दुनिया में
जिन्दा क़त्ल होने के लिए …………..
बिन जन्मे ही मार दिए जाने के लिए

क्या आप भी ऐसे ही मजबूर थी माँ
या आप भी डर गयी थी दादी और पापा की तरह
कि कही मैं आप पर बोझ न बन जाऊँ
अपने बेटे का पेट तो भर सकते है आप
लेकिन क्या मुझे दो वक़्त की रोटी नही दे पाते
क्या मैं इतना खा लेती माँ …………………….
कि आप लोगो के लिए मुझे पालना मुश्किल हो जाता
क्या मैं सच में बोझ बन जाती माँ
आपके लिए भी ………………
क्या इसीलिए आप सबने मुझे जन्म लेने से पहले ही मार दिया
क्या सच में ही बेटियाँ बोझ होती है माँ
बोलो न माँ ……….क्यों बेटियाँ बोझ होती है !

Thursday, March 29, 2012

बेटियां,

बेटी है तो कल है"
बेटी है तो कल है .
बेटी गंगा जैसी पावन.बेटी गंगा जल है .
बेटी सुख की नदिया. बेटी निश्चल अविरल है ..बेटी है तो कल है .
बेटी से होता रोशन सरे जग का आँगन है,
बेटी आँगन की तुलसी,बेटी नयनजल है ..
बेटी है तो कल है .
बेटी बिन न होता कोई कम सफल है ...बेटी है तो कल है..
बेटी से है होली. बेटी से है दिवाली .
बेटी से रक्षाबंधन जैसा पर्व है ...बेटी है तो कल ...
बेटी चांदनी है बेटी रोशनी है .
बेटी न रुकने वाली ऐसी एक लहर है ..बेटी है तो कल है .
देती साथ अपनों का .उठाती बोझ अपनों का हश हश कर ..करती ये रोशन अपने बाबुल का घर है .
बेटी है तो कल है ..
बेटी को कोख में मत मरो उसे भी जीने का हक़ है..


बेटियां,

तो बहु कहाँ से लाओगे??????

नन्ही सी एक कली हूँ मैं
कल मैं भी तो इक फूल बनूँगी
महका दूंगी दो घर आँगन
खिलकर जब मैं यूँ निखरुंगी

ना कुचलो अपने कदमों से
यूँ मुझको इक फल की चाहत में
फल कहाँ कभी बागबां का हुआ है
गिरता अक्सर गैरों की छत पे

उम्र की ढलती शाम में जब
ना होगा साथ कोई साया
याद आयेगा ये अंश तुम्हारा
जिसको तुमने खुद ही है बुझाया

क्या इन फलों से ही है माली
तेरी इस बगिया की पहचान
गुल भी तो बढ़ाते है खिलकर
तेरी इस गुलिस्तां की शान

बोलो फूल ही ना होंगे तो
तुम फल कहाँ से पाओगे
बेटी जो ना होगी किसी की
तो बहु कहाँ से लाओगे?

तो बहु कहाँ से लाओगे??????



बेटियां

ऐसी होती हैं बेटियां

मिट्टी की खुशबू-सी होती हैं बेटियां,
घर की राज़दार होती हैं बेटियां,

बचपन हैं बेटियां, जवानी हैं बेटियां,
सत्यम्-शिवम् सुंदरम्-सी होती हैं बेटियां,

सूरज-सी खिलखिलाती होती हैं बेटियां,
चंदा की मुस्कुराहट-सी होती हैं बेटियां,

दुर्गा-सी बेटियां, कभी गंगा-सी बेटियां,
हर महिषासुर का वध करने को तैयार बेटियां,

मायके से ससुराल का सफर तय करती हैं बेटियां,
कल्पना में बेटियां, कभी वास्तविकता में बेटियां,

फिर क्यों जला देते हैं ससुराल में बेटियां?
फिर क्यों ना बांटे खुशियां जब होती हैं बेटियां?

एक नहीं दो वंश चलाती हैं बेटियां,
फिर गर्भ में क्यों मार दी जाती हैं बेटियां?


बेटियाँ "

बेटियाँ

प्यार का मीठा एहसास हैं बेटियाँ
घर के ऑंगन का विश्वास हैं बेटियाँ

वक़्त भी थामकर जिनका ऑंचल चले
ढलते जीवन की हर श्वास हैं बेटियाँ

जिनकी झोली है खाली वही जानते
पतझरों में भी मधुमास हैं बेटियाँ

रेत-सी ज़िन्दगी में दिलों को छुए
मखमली नर्म-सी घास हैं बेटियाँ

तुम न समझो इन्हें दर्द का फलसफा
कृष्ण-राधा का महारास हैं बेटियाँ

उनकी पलकों के ऑंचल में ख़ुशियाँ बहुत
जिनके दिल के बहुत पास हैं बेटियाँ

गोद खेली, वो नाज़ों पली, फिर चली
राम-सीता का वनवास हैं बेटियाँ

जब विदा हो गई, हर नज़र कह गई
ज़िन्दगी भर की इक प्यास हैं बेटियाँ


बेटियाँ "

बेटियाँ "

सुबह की सुनहली धूप _सी ये मासूम बेटियाँ,

जब घर में जन्म लेती है,

कहीं ख़ुशी तो कहीं मातम होता है,

कहीं तो कोमल कली_सी पाली जाती हैं,

ओर कहीं काली रात _सी धुत्कार दी जाती है,

थोड़ा सा प्यार पा कर खिल जाती हैं,

जहाँ भी जाएँ दूध में पानी_ सी मिल जाती हैं,

सुबह की सुनहली धूप_ सी मासूम

ये बेटियाँ

स्रिस्टी को जन्म देती हैं,

अपने गर्भ में पालती हैं,

ओर गर्भ में ही मार दी जाती हैं,

ये बेटियाँ

जग स्तंभ कहलाती हैं

फिर भी सहारे को तरसती हैं,

सुबह की सुनहरी धूप सी मासूमयाँ

ये बेटियाँ "

बेटियाँ "

बेटी

ह्रदय का अंग होती

उसकी पीड़ा सही

ना जाती

व्यथा उसकी

निरंतर रुलाती

ह्रदय को तडपाती

एक पल भी चैन नहीं

लेने देती

मन सदा

उसकी कुशल क्षेम चाहता

उसके प्यार में डूबा

रहता

बेटी का जन्म

पिता का सबसे

महत्वपूर्ण सृजन होता

प्रेम निश्छल,निस्वार्थ होता

उसकी खुशी ह्रदय की

सबसे बड़ी खुशी होती

बेटी ,पिता के जीवन में

खिलती धूप सी होती

उसकी कमी

अन्धकार से कम

ना होती

बेटी पिता को

परमात्मा की भेंट होती

उसके नाम से ही आँखें

नम होती


बेटियाँ "

बेटी है तो कल है"

बेटी है तो कल है .

बेटी गंगा जैसी पावन.बेटी गंगा जल है .

बेटी सुख की नदिया. बेटी निश्चल अविरल है ..बेटी है तो कल है .

बेटी से होता रोशन सरे जग का आँगन है,

बेटी आँगन की तुलसी,बेटी नयनजल है ..

बेटी है तो कल है .

बिन न होता कोई कम सफल है ...बेटी है तो कल है..

बेटी से है होली. बेटी से है दिवाली .

बेटी से रक्षाबंधन जैसा पर्व है ...बेटी है तो कल ...

बेटी चांदनी है बेटी रोशनी है .

बेटी न रुकने वाली ऐसी एक लहर है ..बेटी है तो कल है .

देती साथ अपनों का .उठाती बोझ अपनों का हश हश कर ..करती ये रोशन अपने बाबुल का घर है .

बेटी है तो कल है ..

बेटी को कोख में मत मरो उसे भी जीने का हक़ है.
.

बेटियाँ "

बेटी .......प्यारी सी धुन

न जाने क्यों आज भी

हमारे समाज में

हर घर परिवार में

पुत्र की चाहत का

इज़हार किया जाता है।

गर बेटी हो जाए

तो माँ का तिरस्कार किया जाता है।

कितनी मजबूर होती होगी

वो माँ

जो अपने गर्भ में

पलने वाले बच्चे को

मात्र इस लिए काल के

क्रूर हाथों के हवाले कर दे

कि वो बेटी है।

नष्ट कर देते हैं

बेटी कि संरचना को

भूल जाते हैं सच्चाई कि

यही बेटियाँ सृष्टि रचती हैं।

शायद ऐसे लोग बेटी की

अहमियत नही जानते हैं

बेटा लाख लायक हो

पर बेटियाँ

मन में बसती हैं

उनके रहने से

न जाने कितनी

कल्पनाएँ रचती हैं।

बेटियाँ माँ का

ह्रदय होती हैं , सुकून होती हैं

उसके जीवन के गीतों की

प्यारी सी धुन होती हैं.

बेटियाँ

बेटियाँ


प्यार का मीठा एहसास हैं बेटियाँ

घर के ऑंगन का विश्वास हैं बेटियाँ

वक़्त भी थामकर जिनका ऑंचल चले

ढलते जीवन की हर श्वास हैं बेटियाँ

जिनकी झोली है खाली वही जानते

पतझरों में भी मधुमास हैं बेटियाँ

रेत-सी ज़िन्दगी में दिलों को छुए

मखमली नर्म-सी घास हैं बेटियाँ

तुम न समझो इन्हें दर्द का फलसफा

कृष्ण- -राधा का महारास हैं बेटियाँ

उनकी पलकों के ऑंचल में ख़ुशियाँ बहुत

जिनके दिल के बहुत पास हैं बेटियाँ

गोद खेली, वो नाज़ों पली, फिर चली

राम-सीता का वनवास हैं बेटियाँ

जब विदा हो गई, हर नज़र कह गई

ज़िन्दगी भर की इक प्यास हैं बेटियाँ

बेटियाँ "

बेटियाँ "


सुबह की सुनहली धूप _सी ये मासूम बेटियाँ,

जब घर में जन्म लेती है,

कहीं ख़ुशी तो कहीं मातम होता है,

कहीं तो कोमल कली_सी पाली जाती हैं,

ओर कहीं काली रात _सी धुत्कार दी जाती है,

थोड़ा सा प्यार पा कर खिल जाती हैं,

जहाँ भी जाएँ दूध में पानी_ सी मिल जाती हैं,

सुबह की सुनहली धूप_ सी मासूम

ये बेटियाँ

स्रिस्टी को जन्म देती हैं,

अपने गर्भ में पालती हैं,

ओर गर्भ में ही मार दी जाती हैं,

ये बेटियाँ

जग स्तंभ कहलाती हैं

फिर भी सहारे को तरसती हैं,

सुबह की सुनहरी धूप सी मासूम

ये बेटियाँ

बेटियाँ "

बेटियाँ "

देवताओ को घर में बसा लीजिये।

भारती मान को भी बचा लीजिये।

ऐ पुरूष चाहते हो कि कल्याण हो-

बेटियाँ देवियाँ है, दुवा लीजिये।।

माँ,बहन ,संगिनी,मीत है बेटियाँ

दिव्यती ,धारती, प्रीत है बेटियाँ।

देव अराध्य की वंदनाएं है ये-

है ऋचा,मन्त्र है ,गीत है बेटियाँ॥

जग की आशक्ति का द्वार है बेटियाँ।

मानवी गति का विस्तार है बेटियाँ।

जग कलुष नासती ,मुक्ति का सार है-

शक्ति है शान्ति है,प्यार है बेटियाँ

बेटियाँ

सूरज से हैं तेज बेटियाँ,
चाँद की शीतल छाँव बेटियाँ,
झिलमिल तारों सी होती हैं,
दुनिया को सौगात बेटियाँ।

कोयल की संगीत बेटियाँ,
पायल की झंकार बेटियाँ,
सात सुरों की सरगम जैसी,
वीणा की वरदान बेटियाँ।

घर की हैं मुस्कान बेटियाँ,
लक्ष्मी का हैं मान बेटियाँ,
माँ बापू और कुनबे भर की,
सचमुच होती जान बेटियाँ।

दुर्गा इंदिरा लक्ष्मी बाई,
जैसी बनें महान बेटियाँ,
कर्म क्षेत्र में बढ़ने को हैं,
आज सभी तैयार बेटियाँ।

सूरज सी हैं तेज बेटियाँ,
चाँद की शीतल छांव बेटियाँ

बेटियाँ "

बेटियाँ "

शायद पल भर में ही
सयानी हो जाती हैं
बेटियाँ,
घर के अंदर से
दहलीज़ तक कब
आज जाती हैं बेटियाँ

कभी कमसिन, कभी
लक्ष्मी-सी दिखती हैं
बेटियाँ।
पर हर घर की
तकदीर, इक सुंदर
तस्वीर होती हैं
बेटियाँ।

हृदय में लिए उफान,
कई प्रश्न, अनजाने
घर चल देती हैं बेटियाँ,
घर की, ईंट-ईंट पर,
दरवाज़ों की चौखट पर
सदैव दस्तक देती हैं
बेटियाँ।

पर अफ़सोस क्यों सदैव
हम संग रहती नहीं
ये बेटियाँ।

Sunday, January 15, 2012

betiya

"राह देखता तेरी बेटी, जल्दी से तू आना,

किलकारी से घर भर देना, सदा ही तू मुस्काना,


ना चाहूं मैं धन और वैभव, बस चाहूं मैं तुझको ,

तू ही लक्ष्मी, तू ही शारदा, मिल जाएगी मुझको,


सारी दुनिया है एक गुलशन, तू इसको महकाना,

किलकारी से घर भर देना, सदा ही तू मुस्काना,


बन कर रहना तू गुड़िया सी, थोड़ा सा इठलाना,

ठुमक-ठुमक कर चलना घर में, पैंजनिया खनकाना,


चेहरा देख के तू शीशे में, कभी-कभी शरमाना,

किलकारी से घर भर देना, सदा ही तू मुस्काना,


उंगली पकड कर चलना मेरी, कांधे पर चढ़ जाना,

आंचल में छुप जाना मां के, उसका दिल बहलाना,


जनम-जनम से रही ये इच्छा, बेटी तुझको पाना,

किलकारी से घर भर देना, सदा ही तू मुस्काना।|"

betiya

बिन बेटी ये मन बेकल है, बेटी है तो ही कल है,

बेटी से संसार सुनहरा, बिन बेटी क्या पाओगे?

बेटी नयनों की ज्योति है, सपनों की अंतरज्योति है,

शक्तिस्वरूपा बिन किस देहरी-द्वारे दीप जलाओगे?

शांति-क्रांति-समृद्धि-वृद्धि-श्री सिद्धि सभी कुछ है उनसे,

उनसे नजर चुराओगे तो किसका मान बढ़ाओगे ?

सहगल-रफ़ी-किशोर-मुकेश और मन्ना दा के दीवानों!

बेटी नहीं बचाओगे तो लता कहां से लाओगे ?

सारे खान, जॉन, बच्चन द्वय रजनीकांत, ऋतिक, रनबीर

रानी, सोनाक्षी, विद्या, ऐश्वर्या कहां से लाओगे ?

अब भी जागो, सुर में रागो, भारत मां की संतानों!

बिन बेटी के, बेटे वालों, किससे ब्याह रचाओगे?

बहन न होगी, तिलक न होगा, किसके वीर कहलाओगे?

सिर आंचल की छांह न होगी, मां का दूध लजाओगे।

Wednesday, January 11, 2012

betiya

"जब _जब जनम लेती है बेटी,
खुशिया साथ लाती है बेटी ,
माँ की परछाई पिता का रूप होती है बेटी ,
इश्वर की सोगात होती है बेटी ,
सुबह की पहली किरण है बेटी ,
तारों की शीतल छाया है बेटी ,
त्याग और समर्पण सिखाती है बेटी ,
नए-नए रिश्ते बनाती है बेटी ,
जब सुसराल जाये बड़ा रुलाती है बेटी ,
पर जिस घर जाये उजाला लाती है बेटी ,
बेटी की कीमत उनसे पूछो जिनके पास नहीं है बेटी .........||"