Monday, June 25, 2012

राह देखता तेरी बेटी, जल्दी से तू आना,
किलकारी से घर भर देना, सदा ही तू मुस्काना,

ना चाहूं मैं धन और वैभव, बस चाहूं मैं तुझको
तू ही लक्ष्मी, तू ही शारदा, मिल जाएगी मुझको,

सारी दुनिया है एक गुलशन, तू इसको महकाना
किलकारी से घर भर देना, सदा ही तू मुस्काना,

बन कर रहना तू गुड़िया सी, थोड़ा सा इठलाना,
ठुमक-ठुमक कर चलना घर में, पैंजनिया खनकाना

चेहरा देख के तू शीशे में, कभी-कभी शरमाना
किलकारी से घर भर देना, सदा ही तू मुस्काना

उंगली पकड कर चलना मेरी, कांधे पर चढ़ जाना
आंचल में छुप जाना मां के, उसका दिल बहलाना

जनम-जनम से रही ये इच्छा, बेटी तुझको पाना
किलकारी से घर भर देना, सदा ही तू मुस्काना।
एक नन्ही सी कली, धरती पर खिली
लोग कहने लगे पराई है पराई
जब तक कली ये डाली से लिपटी रही
आँचल मे मुँह छिपा कर, दूध पीती रही
फूल बनी धागे मे पिरोई गई
किसी के गले में हार बनते ही
टूट कर बिखर गई
ताने सुनाये गये दहेज में क्या लाई है
पैरों से रौन्दी गई
सोफा मार कर घर से निकाली गई
कानून और समाज से माँगती रही न्याय
अनसुनी कर उसकी बातें
धज्जियाँ उड़ाई गई
अंत में कर ली उसने आत्महत्या
दुनिया से मुँह मोड़ लिया
वह थी
एक गरीब माँ बाप की बेटी.

अगर एक बेटी या बेटा होता,
दुनीयाँ में ये नाता न होता ।

माँ भी होती बाप भी होता,
न भाभी होती न भैया होता,
गर मैं भी अकेला होता,
बहन होती न जीजा होता।

दादी होती दादा भी होता,
न चाची होती न चाचा होता,
गर मेरा बाप अकेला होता,
फुफी होती न फुफा होता।

नानी होती नाना भी होता,
न मामी होती न मामा होता,
गर मेरी माँ अकेली होती,
मौसी होती न मौसा होता।

सास भी होती ससुर भी होता,
न साली होती न साला होता,
गर मेरी बीबी अकेली होती,
मैं भी किसी का जीजा न होता।

अगर एक बेटी या बेटा होता,
दुनीयाँ में ये नाता न होता !!
 

बोलो न माँ …………..बेटिया क्यों बोझ होती है .?
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क़त्ल करना है तो सबका करो
मुझ अकेली को मारने से क्या होगा
अगर मिटाना है मेरी हस्ती को
तो सबको मिटाओ …………..
मुझ अकेली को मिटाने से क्या होगा …………..

हूँ गुनहगार अगर मैं दादी
तो दोषी तो आप भी है
सजा देनी है तो खुद को भी दो
मुझ अकेली को देने से क्या होगा …………………

किया होता अगर ऐसा ही
दादी के पापा ने दादी के साथ
तो क्या आज आप होते पापा
जरा सोच कर तो देखिये …………………
मेरे इस नन्हे से जिस्म के टुकडो को
जो रंगे हुए है खून से ……………..
एक छोटी सी सुई चुभ जाती है जब उँगली में
तो कितना दर्द होता है ……..
जानते है न पापा आप ……………………..
फिर कैसे …………….फिर कैसे पापा
कैसे आपने कर दिया अपने ही अंश को
उन सब के हवाले काटने के लिए ……………
एक नन्ही सी जान को मरने के लिए
अगर बोझ ही उतरना है …………….
तो दादी को, माँ को, बुआ को भी मारो
मुझ अकेली को मारने से क्या होगा
क़त्ल करना है………………………………..
कितनी आसानी से मान गई आप भी माँ
क्यों —- क्या मैं कोई भी नही थी आपकी
या मज़बूरी थी आपकी भी ……….
भगवान की तरह………………
भगवान जिन्हें मालूम है अपने इंसानों की फितरत
जो जानते है —– इन लालची इंसानों की हैवानियत को
लेकिन फिर भी भेज देते है हमे इस दुनिया में
जिन्दा क़त्ल होने के लिए …………..
बिन जन्मे ही मार दिए जाने के लिए

क्या आप भी ऐसे ही मजबूर थी माँ
या आप भी डर गयी थी दादी और पापा की तरह
कि कही मैं आप पर बोझ न बन जाऊँ
अपने बेटे का पेट तो भर सकते है आप
लेकिन क्या मुझे दो वक़्त की रोटी नही दे पाते
क्या मैं इतना खा लेती माँ …………………….
कि आप लोगो के लिए मुझे पालना मुश्किल हो जाता
क्या मैं सच में बोझ बन जाती माँ
आपके लिए भी ………………
क्या इसीलिए आप सबने मुझे जन्म लेने से पहले ही मार दिया
क्या सच में ही बेटियाँ बोझ होती है माँ
बोलो न माँ ……….क्यों बेटियाँ बोझ होती है !