Monday, January 19, 2015

बेटी

बेटी नहीं है पराया धन
तुम्हारे जाने के बाद,
आ रहें मुझे वह पल याद,
विदाई के समय रोना फुट-फुटकर !
होस्टल मे भेजे जानेवाले बच्चे के बराबर,
दुबिधा मे डूबा हुवा तुम्हारा मन,
शायद कुछ प्रश्न के उत्तर खोजता चिंतन ,
शुरुआत का डर नये रिश्तों का-
"पुराने" को स्मृतियों के हवाले करने का !
बीता हुवा बचपन, बाबुल का आंगन,
अपने सारे पलों का कढ़वा या मीठापन,
मैं समझकर भी बना हुवा तटस्थ- नासमझ
उंच्च-नीच की तहजीब और परम्परा का बोझ,
लग गया हौशला दिखाने , दिलासा दिलाने मे,
हमारी छोढ़,सोच अपने सुनहरे कल के बारे मे ,
याद भी नहीं आयेगी,बहुत प्यार मिलेगा,
सब लोग, भाई तुम्हारा, मेरा ख्याल रखेगा |
भोलेपन से या मजबूरी से क्या स्वीकार,
सिसकते-सिसकते गई, छोढ़ बाबुल का संसार |
वक़्त के साथ,बीतें लम्हों के साये मे,
जिन्दगी के धुप-छावं तले, सुख-दुःख मे,
फिर भी हर पल तुम, मेरे आस-पास रहती ,
मेरी पीढ़ा, खुशी और गम को खुद मे झेलती,
जब की मैंने "तुम्हे" तुम्हारे भाग्य के हवाले किया,
पर तुम सहभागी बन हमेशा साथ दिया,
आज भी पिया-घर रहते, बाबुल मे जीती ,
आये-गये मुझे "माँ" बनकर अनुशाषित करती ,
मेरी आवाज के उतार-चढ़ाव से समझ जाती,
मेरी दिल की भी बात तुमसे छिप नहीं पाती |
बिकट, कठिन और बिषम हर अवस्था पहचान,
बार-बार फ़ोन करती हो जाती हो कितना परेशान !!
तब मेरे अन्दर सोच का तांडव मचाता घमाशान,
पास के लोग मेरे, बेटे-बहु, या किस-किस का ब्याखन-
पराया धन सोचकर जीसे रुलाकर विदा किया था ,
वही धन अब, सब से पास, और ज्यादा काम आता |

बेटी

एक पिता की प्रार्थना अपनी बेटी की शादी में अपने दामाद से
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माँ की ममता का सागर ये,
मेरी आँखों का तारा है ! 
कैसे बतलाऊँ तुमको ,
किस लाड प्यार से पाला है !!
तुम द्वारे मेरे आए हो,
मैं क्या सेवा कर सकता हूँ !
ये कन्या रूपी नवरत्न तुम्हें,
मैं आज समर्पित करता हूँ !!
मेरे ह्रदय के नील गगन का,
ये चाँद सितारा है !
मैं अब तक जान ना पाया था,
इस पर अधिकार तुम्हारा है !!
ये आज अमानत लो अपनी,
करबद्ध निवेदन करता हूँ !
ये कन्या रूपी नवरत्न तुम्हें,
मैं आज समर्पित करता हूँ !!
इससे कोई भूल होगी,
ये सरला है , सुकुमारी है !
इसकी हर भूल क्षमा करना ,
ये मेरे घर की राजदुलारी है !!
मेरी कुटिया की शोभा है,
जो तुमको अर्पण करता हूँ !
ये कन्या रूपी नवरत्न तुम्हें ,
मैं आज समर्पित करता हूँ !!
भाई से आज बहन बिछ्ड़ी ,
माँ से बिछ्ड़ी उसकी ममता !
बहनों से आज बहन बिछ्ड़ी ,
लो तुम्हीं इसके आज सखा !!
मैं आज पिता कहलाने का,
अधीकर समर्पित करता हूँ !
ये कन्या रूपी नवरत्न तुम्हें,
मैं आज समर्पित करता हूँ !!
जिस दिन था इसका जन्म हुआ,
ना गीत हुए ना बजी शहनाई !
पर आज विदाई के अवसर पर,
मेरे घर बजती खूब शहनाई !!
यह बात समझकर मैं,
मन ही मन रोया करता हूँ !
ये गौकन्या रूपी नवरत्न तुम्हें,
मैं आज समर्पित करता हूँ !!
ये गौकन्या रूपी नवरत्न तुम्हें,
मैं आज समर्पित करता हूं .....
बहुत सुन्दर लाईन
दहेज़ में बहु क्या लायी...
ये सबने पूछा...
लेकिन एक बेटी क्या क्या छोड़ आई...
किसी ने सोचा ही नहीं...

बेटी

ज्ञात कोख में बेटी होगी, एवर्सन से उसे गिराते।
बेटी होती घर में मातम, बेटा होता खुशी मनाते।।
देख न पाई कैसी दुनियाँ, उसे पेट में मसल दिया है।
कहते कभी न चीटी मारी, पर बेटी का कतल किया है।।
सब धर्मों में, सब समाज में, बेटी क्यों अपराध बनी है?
आगे चलकर जीवन देती, बेटी क्यों अभिशाप बनी है??
जिसने पुत्र किया है पैदा, उसने ही बेटी है जन्मी।
बेटा हो सुख, बेटी हो दुख, यह मानवता की बेशर्मी।।
पिता डाँट माँ की फटकारें, वह समझे कि प्यार यही है।
लाड प्यार केवल भाई को, उसने केवल मार सही है।।
गलती से गलती हो जाये, कहते सब यह पागल मूरख।
वह कहती गलती धोखे से, सब कहते यह करती बकबक।।
जानबूझकर कर देता है, बेटा अगर बड़ी कोइ गलती।
उस पर तो मम्मी पापा की, नजर नहीं जाने क्यों पड़ती।।
बेटी माँगे कोई खिलौना, बातों से उसको बहलाते।
बेटा माँगे कोई खिलौना, एक नहीं दो-दो दिलवाते।।
सुन्दर नये भाई को कपड़े, बहने उसका उतरन पहनें।
बदल गई है कितनी दुनियाँ, मगर उपेक्षित फिर भी बहनें।।
बेटी घर की रौनक होती, बेटी घर की जिम्मेदारी।
बेटी है तो घर में खुश्बू, घर की करती पहरेदारी।।
उसको सबकी चिंता रहती, सबको खुशियाँ देने वाली।
ईश्वर की यह कैसी माया, उसकी किस्मत रोने वाली।।
बीमारी में बेटी सम्मुख, बेटी घऱ की पीड़ा हरती।
बेटे घर संकट लाते, बेटी घर में खुशियाँ भरती।।
भाई को वह बहुत चाहती, बेटी को है सहना आता।
सबका दुख वह हरने वाली, अपना दुख न कहना आता।।
संविधान में हक हैं सारे, पर घर में अधिकार नहीं है।
मात-पिता के क्यों अधिकारी, बेटी से जो प्यार नहीं।।
बचपन को वह जान न पाई, कब है आता कब है जाता।
बचपन का आभास उसे तब, जिस दिन बेटी बनती माता।।

बेटियाँ



●~~"बेटियाँ कुछ लेने नहीं आती है पीहर"~~●
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..बेटियाँ..
..पीहर आती है..
..अपनी जड़ों को सींचने के लिए..
..तलाशने आती हैं भाई की खुशियाँ..
..वे ढूँढने आती हैं अपना सलोना बचपन..
..वे रखने आतीं हैं..
..आँगन में स्नेह का दीपक..
..बेटियाँ कुछ लेने नहीं आती हैं पीहर..
~~~
..बेटियाँ..
..ताबीज बांधने आती हैं दरवाजे पर..
..कि नज़र से बचा रहे घर..
..वे नहाने आती हैं ममता की निर्झरनी में..
..देने आती हैं अपने भीतर से थोड़ा-थोड़ा सबको..
..बेटियाँ कुछ लेने नहीं आती हैं पीहर..
~~~
..बेटियाँ..
..जब भी लौटती हैं ससुराल..
..बहुत सारा वहीं छोड़ जाती हैं..
..तैरती रह जाती हैं..
..घर भर की नम आँखों में..
..उनकी प्यारी मुस्कान..
..जब भी आती हैं वे, लुटाने ही आती हैं अपना वैभव..
..बेटियाँ कुछ लेने नहीं आती हैं पीहर..

beti

Dedicated To All The Females..
Beti ko Chand jaisi mat banao ki har koi ghur ghur ke
dekhe...
Per
Beti ko Suraj jaisi banao taki ghur ne se pahele sab ki
nazar juk jaye...
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"Jo 'Mummy' or 'Papa' ko Swarg le jaata hai, wo "Beta" Hota hai par,
Jo Swarg ko Ghar Le aaye, wo "Beti" Hoti hai".....!

betiya

लड़की को मत समझो बेकार।
इसके बिना है अधूरा हर परिवार।।
बहन बनकर जिसने है हर भाई को प्यार से सम्भाला।
बेटी बनकर जिसने है भरा हर बाप के दिल में खुशियो का उजाला।।
फ्रेंड बनकर समझाया जिसने।
शादी कर के दूसरा घर चलाया भी इसने।।
लड़की न होती तो आज माँ न होती।
माँ न होती तो आज जननी कौन होती?
जीना बस लड़को का नही है अधिकार।
लड़की से ही है खुश हर परिवार।।
लड़की को मत समझो बेकार।
इसके बिना है अधूरा हर परिवार।।